धूल धूसरित हूँ मैं प्रिये
आलिंगन कैसे करूं तुम्हारा
धूल के ये कण
तुम्हारा श्रृंगार मिटा ना दें
इनकी सोंधी महक
तुम्हारी खुशबू घटा ना दें
इनसे लिपट कर
तुम्हारे जुल्फें रेशम रेशम ना रहें
तुम्हारा कोमल गोरा बदन
कहीं ख़ुश्क औ' श्यामल ना हो जाये
नहीं नहीं
मैं तुम्हे तुमसे जुदा नहीं कर सकता
तुम हो कोमल कंचन काया वाली
मैं हूँ कठोर जंगल का वासी
मुझे ही खुद को बदलना होगा
हाँ प्रिये तुम्हे पाना है तो
मुझे खुद को बदलना होगा
तुम जैसी हो वैसी ही रहना
प्रिये तुम्हीं हो मेरी कल्पना
और मैं
अपनी कल्पना को छोड़ नहीं सकता
किस्मत ने मुझे तुमसे मिलाया है
मैं उस राह को मोड़ नहीं सकता
आलिंगन कैसे करूं तुम्हारा
धूल के ये कण
तुम्हारा श्रृंगार मिटा ना दें
इनकी सोंधी महक
तुम्हारी खुशबू घटा ना दें
इनसे लिपट कर
तुम्हारे जुल्फें रेशम रेशम ना रहें
तुम्हारा कोमल गोरा बदन
कहीं ख़ुश्क औ' श्यामल ना हो जाये
नहीं नहीं
मैं तुम्हे तुमसे जुदा नहीं कर सकता
तुम हो कोमल कंचन काया वाली
मैं हूँ कठोर जंगल का वासी
मुझे ही खुद को बदलना होगा
हाँ प्रिये तुम्हे पाना है तो
मुझे खुद को बदलना होगा
तुम जैसी हो वैसी ही रहना
प्रिये तुम्हीं हो मेरी कल्पना
और मैं
अपनी कल्पना को छोड़ नहीं सकता
किस्मत ने मुझे तुमसे मिलाया है
मैं उस राह को मोड़ नहीं सकता
किस्मत ने मुझे तुमसे मिलाया है
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति ..../