Friday 29 June 2012

दुल्हन


नैनों में अंसुवन के मोती लिए 
दुल्हन डोली चढ़ने जा रही 
जिस आँगन में खेली दिन रात
उस आँगन की याद सता रही 
कलपती सिसकती गोरी 
अपनों के गले मिलती जा रही 
जाने फिर कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोच सोच बिलखती जा रही  
........
जिस आँगन में देखे वसंत सारे
वो आँगन पीछे छुटी जा रही 
इक्कट दुक्कट खेला जिन सखियों संग 
वो सखियाँ बिछड़ी जा रही 
माखन चाचा बृंदा मौसी चंपा चमेली 
सब रहे गए गाँव में ... हम कहाँ जा रही 
जाने फिर कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोच सोच बिलखती जा रही  
.......
बाबूजी के काँधे पर मेला देखा 
माई ने गृहस्थी सिखाई 
भाई बहन संग अम्बिया चुरायी 
अब सब की याद सता रही 
सब का आशीष लिए बैठी डोली में 
रुंधे गले से सबको समझा रही 
जाने फिर कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोच सोच बिलखती जा रही  
    

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