Thursday 28 June 2012

समय

रेत की घड़ी की तरह

समय ससर रहा था

मैं हर सांस

उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था 

इस उम्मीद में कि

शायद कोई एक पल

मैं अपनी मुट्ठी में बांध लूं 

और फिर

ज़िन्दगी की आप धापी में

जब फुरसत मिले तो 

उस पल को

उसकी रौ में जी लूं

पर कहाँ ये मुमकिन था 

समय अपनी रफ़्तार

कभी कम नहीं करता

और ना ही कभी समय

कहीं पर दम भरता

जो भी है बस इस पल में है

जीना है तो जी लो वरना

जीवन भर पछताना होगा

फिर ना वो समय होगा

ना ही कोई अफसाना होगा


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