Thursday 28 June 2012

पेड़ और इंसान


घने पेड़ की छांव में

चिलचिलाती धूप भी

नतमस्तक हो जाती है

भठ्ठी की आंच सी जलती लू भी

शीतल पवन बन जाती है

कैसी शख्सियत है ये पेड़

आग में शीतलता भर देता है

बदले में कुछ नहीं लेता है

इसके शरण में जो आता है 

धूप में शीतलता ही पाता है

थका पथिक हो या किसान 

ये उन सब से अनजान

जो भी आये वो शरणागत है

इसकी छांव में सबका स्वागत है 

------------------और इंसान

अपने स्वार्थ में पागल है 

कैसे कितना कहाँ से लायें

इसी सोच में व्याकुल है

अगर पेड़ में स्वार्थ होता 

तो इंसान साये को रोता 

धूप में तपता

लू में जलता 

जो साये का मूल्य न देता

क्यूँ नहीं लेता है इंसान

इन पेड़ों से

निःस्वार्थ सेवा का वरदान

सोचो फिर क्या होता

शाख्शियतें बदल जातीं

मिल जाती नयी पहचान

काश ऐसा होता तो 

फिर कोई भूखा न होता 

ना कोई सड़कों पे सोता

इंसान इंसान में फर्क ना होता ...

No comments:

Post a Comment