द्रौपदी ने कहा अर्जुन से
हे! श्रेष्ठ धनुर्धर
तुम लाये थे मुझको वर कर
कहाँ गयी थी तुम्हारी पौरुषता
जब दांव पर थी मेरी अस्मिता
कहने को तुम बड़े धनुर्धर हो
क्यों नहीं रोका फिर इस अनर्थ को
जो भी हुआ उसमें क्यूँ मैं भागीदार बनी
मैं पांचाली भरी सभा में शर्मसार हुयी
है तुम्हारे पास मेरे प्रश्नों का उत्तर
---------------------अर्जुन ने कहा
तुम सच कहती हो पांचाली
जुए में तुम्हें दांव पे रखना
हमारी भूल की पराकाष्ठा थी
अपनी शिक्षा पर हमारी आस्था थी
शायद शिक्षा ही हमारी अधूरी रही
इसलिए वास्तविकता से हमारे
सोच की दूरी रही
कैसे माना मेरा अंतर्मन
दांव पे रखना तुम्हारा तन मन
तुम्हे अपमानित होता देख
कैसे मैं संवेदना शुन्य रहा
क्यूँ हुयी हमारी पौरुषता खोखली
क्यूँ ये बात हमें नहीं खली
क्या भुजाएं हमारी कमजोर थीं
या दिल की आग ठंढी
क्या था जिसने हमें रोका था
तुम्हारी अस्मिता बचाने से
शायद हमारी कायरता थी
और परिस्थिति को
हमारा समर्पण
कितना आहत हुआ होगा
तुम्हारा अंतर्मन
दु:शासन के दु:साहस से
दुर्योधन के अठाहास से
तुम्हारी वेदना से क्यूँ
मैं व्यथित नहीं हुआ
युद्ध तो अवश्यम्भावी था
कल नहीं तो आज ही होता
कम से कम वो अनर्थ न होता
जिसका होना
मुझे आज भी सालता है
क्यूँ नहीं काटा हाथ अधर्मी का
जिससे तुमको छुआ था
क्यूँ नहीं भुजाएं हमारी फड़की
क्यूँ नहीं आग दिल में धधकी
मैं श्रेष्ठ धनुर्धर
उस सभा में
कायर पति ही बना रहा
तुम अपमानित होती रही
मैं सब कुछ सहता रहा
अब मुझको होती है ग्लानि
जड़ चेतन ....मूढ़ ...मैं अज्ञानी
चेतना मेरी अब जागृत है
नारी रक्षा को संकल्पित है
उस होनी को मैं आज भी शर्मिंदा हूँ
हर नारी की सम्मान की रक्षा में
हर पुरुष में आज मैं जिंदा हूँ
हे! श्रेष्ठ धनुर्धर
तुम लाये थे मुझको वर कर
कहाँ गयी थी तुम्हारी पौरुषता
जब दांव पर थी मेरी अस्मिता
कहने को तुम बड़े धनुर्धर हो
क्यों नहीं रोका फिर इस अनर्थ को
जो भी हुआ उसमें क्यूँ मैं भागीदार बनी
मैं पांचाली भरी सभा में शर्मसार हुयी
है तुम्हारे पास मेरे प्रश्नों का उत्तर
---------------------अर्जुन ने कहा
तुम सच कहती हो पांचाली
जुए में तुम्हें दांव पे रखना
हमारी भूल की पराकाष्ठा थी
अपनी शिक्षा पर हमारी आस्था थी
शायद शिक्षा ही हमारी अधूरी रही
इसलिए वास्तविकता से हमारे
सोच की दूरी रही
कैसे माना मेरा अंतर्मन
दांव पे रखना तुम्हारा तन मन
तुम्हे अपमानित होता देख
कैसे मैं संवेदना शुन्य रहा
क्यूँ हुयी हमारी पौरुषता खोखली
क्यूँ ये बात हमें नहीं खली
क्या भुजाएं हमारी कमजोर थीं
या दिल की आग ठंढी
क्या था जिसने हमें रोका था
तुम्हारी अस्मिता बचाने से
शायद हमारी कायरता थी
और परिस्थिति को
हमारा समर्पण
कितना आहत हुआ होगा
तुम्हारा अंतर्मन
दु:शासन के दु:साहस से
दुर्योधन के अठाहास से
तुम्हारी वेदना से क्यूँ
मैं व्यथित नहीं हुआ
युद्ध तो अवश्यम्भावी था
कल नहीं तो आज ही होता
कम से कम वो अनर्थ न होता
जिसका होना
मुझे आज भी सालता है
क्यूँ नहीं काटा हाथ अधर्मी का
जिससे तुमको छुआ था
क्यूँ नहीं भुजाएं हमारी फड़की
क्यूँ नहीं आग दिल में धधकी
मैं श्रेष्ठ धनुर्धर
उस सभा में
कायर पति ही बना रहा
तुम अपमानित होती रही
मैं सब कुछ सहता रहा
अब मुझको होती है ग्लानि
जड़ चेतन ....मूढ़ ...मैं अज्ञानी
चेतना मेरी अब जागृत है
नारी रक्षा को संकल्पित है
उस होनी को मैं आज भी शर्मिंदा हूँ
हर नारी की सम्मान की रक्षा में
हर पुरुष में आज मैं जिंदा हूँ
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