( मेरे पिता तुल्य श्वसुर जी के निधन पर दिनांक २ अगस्त २००२ की रात्रि को लिखी गई कविता आज इस ब्लॉग पर उनके आशीर्वाद स्वरुप डाल रहा हूँ। उनका निधन कैंसर से हुआ था। जब तक हम सब को पता चला तब तक वो कर्क रोग उन्हें अपनी गिरफ्त में ले चुका था। अपने अंतिम क्षण उन्होनें बहुत कष्ट में काटे।)
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बाबूजी
आप अचानक यूँ कहाँ खो गए
अभी तो आप यहीं थे
हमारे आस पास
आपकी आवाज़
कानों में अमृत घोलती थी
आपका स्पर्श
मन को चैन देता था
हमसे कौन सी भूल हुई
जो आप हम सब से रूठ गए
और
हमें ऐसी सजा दे गए
जिसका पश्चाताप
हमें ज़िन्दगी भर रहेगा
अपनी भूल सुधारने का
एक मौका
तो हमारा हक़ था
आपने वो हक़ भी
हमसे छीन लिया
और हमें
पश्चाताप की आग में
जलने के लिए छोड़ दिया
आपने एक दर्द हमसे छुपाया
और वो दर्द
हमारी पूरी ज़िन्दगी का दर्द बन गया
आप तो गहरी नींद में सो गए
हमें यह भी नहीं बताया
कि
इस दर्द को हम कैसे सहें
क्या करें
कैसे रहें
किस से कहें
कि हम दर्द में डूबे हैं
क्योंकि
अपना दुःख दर्द
तो हम आपको बताते थे
और आप
अपनी स्नेहमयी मुस्कान से
हमारे सिर को सहलाते हुए
उस दुःख को
हमारे दर्द को
जाने कैसे हर लेते थे
अब हमें इस दर्द के साथ
जीना होगा
कि
आप हमसे रूठ गए हैं
और दूर कहीं खो गए हैं
इस तरह
कि
अब आपको
हम कहीं ढूंढ भी नहीं पायेंगे
और अपना दर्द
अपने सीने में छुपाये
आपके बिना जीने को
विवश हो जायेंगे
क्योंकि
आप ही ने हमको
दीर्घायु होने का
आशीष दिया था
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बाबूजी
आप अचानक यूँ कहाँ खो गए
अभी तो आप यहीं थे
हमारे आस पास
आपकी आवाज़
कानों में अमृत घोलती थी
आपका स्पर्श
मन को चैन देता था
हमसे कौन सी भूल हुई
जो आप हम सब से रूठ गए
और
हमें ऐसी सजा दे गए
जिसका पश्चाताप
हमें ज़िन्दगी भर रहेगा
अपनी भूल सुधारने का
एक मौका
तो हमारा हक़ था
आपने वो हक़ भी
हमसे छीन लिया
और हमें
पश्चाताप की आग में
जलने के लिए छोड़ दिया
आपने एक दर्द हमसे छुपाया
और वो दर्द
हमारी पूरी ज़िन्दगी का दर्द बन गया
आप तो गहरी नींद में सो गए
हमें यह भी नहीं बताया
कि
इस दर्द को हम कैसे सहें
क्या करें
कैसे रहें
किस से कहें
कि हम दर्द में डूबे हैं
क्योंकि
अपना दुःख दर्द
तो हम आपको बताते थे
और आप
अपनी स्नेहमयी मुस्कान से
हमारे सिर को सहलाते हुए
उस दुःख को
हमारे दर्द को
जाने कैसे हर लेते थे
अब हमें इस दर्द के साथ
जीना होगा
कि
आप हमसे रूठ गए हैं
और दूर कहीं खो गए हैं
इस तरह
कि
अब आपको
हम कहीं ढूंढ भी नहीं पायेंगे
और अपना दर्द
अपने सीने में छुपाये
आपके बिना जीने को
विवश हो जायेंगे
क्योंकि
आप ही ने हमको
दीर्घायु होने का
आशीष दिया था
बहुत ही मर्मस्पर्शी ..../
ReplyDeleteआज मन सुबह से ही कुछ ब्यथित सा है...
ReplyDeleteऔर आपका ये पोस्ट तो रुला ही दिया...
बाबूजी को बिनम्र श्रधांजलि....बाबूजी ने इसलिए छुपाया होगा की इंसान जिसे बहुत प्यार करता है उसे अपनी आँखों के सामने दुखी नहीं देख पाता...आप सबका मुस्कुराता हुआ चेहरा उनमे नई उर्जा ताज़ा संचार भरता होगा...वो मुरझाया चेहरा देखना नहीं चाहते होगें....
आपका ये पोस्ट आपका उनके प्रति असीम प्यार और अपनापन को दर्शाता है...उनकी इक्षा थी की आप सब सदा सुखी रहें...उनकेआशीष को मत्थे लगायें तभी आप सबका उनके लिए सच्ची श्रधांजलि होगी....आप दीर्घायु होयें मेरी शुभकामनाये भी यही है .. ... ..किसी अपने को खोने का गम कितना सालता है ,मुझे इसका बखूबी एहसास है.... !!
ऐसे ही विचार मंथन से मैं तब गुजरी थी, जब पा को खोया था|जमीन में शांत और निश्चल नींद में खोये पा को मैंने कितना झकझोरा था पर वह नहीं उठे|ऐसा लग रहा था कि कुछ कहना चाहते थे मुझसे| क्यों चले गए पा?
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