Sunday 21 October 2012

कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १७)




वो क़त्ल करने के रोज़ नए तरीके इज़ाद करते हैं
हम सर झुकाए उनके तरीकों का इंतज़ार करते हैं


मोहब्बतों के शे'र वो अक्सर सुनाते हैं
'गर इश्क है उनको तो क्यूँकर छुपाते हैं


यूँ मुस्कुरा कर वो देखते हैं जब जहां को
उनसे सैकड़ों निगाहें कहती हैं मैं यहाँ हूँ


वो बनते हैं नादान जान कर सब कुछ
पूछते हैं हमसे उनकी खासियत क्या है


आप यूँ ज़ख्म-ए-दिल हमसे कब तक छुपाते रहेंगे
हम मोहब्बत से अपने आपके ज़ख्मों को मिटाते रहेंगे


वो कहते हैं अक्सर हमसे उनको हमारा इंतज़ार रहता है 
इश्क नहीं उनको अगर तो क्यूँ दिल उनका बेकरार रहता है


वो कहते हैं हम उनकी कदर नहीं करते
अब कैसे बताये उन्हें हम उन्हीं पर मरते


हमने कहा आप अजीजा हैं हमारी
वो हंस कर इसे मजाक समझ बैठे


तुम्हें अपने दिल के अंदर यूँ बिठा कर रखूंगा
इस जहां को कभी फिर याद ना कर पाओगे 


बरसों से देते रहे हम अपने सबर का इम्तहान
जाने ये इश्क कहाँ से आ गया हमारे दरम्यान



1 comment:

  1. छोटे-छोटे शेर बहुत सुंदर हैं। केवल वाह निकलती है दिल से
    वाह वाह वाह !!!!!!!!!!

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