Wednesday 10 October 2012

तुम्हारे यादों के गाँठ

कुछ तो है

जो तुम्हें भूलने नहीं देता

शायद गाँठे हैं

तुम्हारी यादों की

जो बाँधी थी तुमने

इस दिल पे

हमारे

उन मिलन की घड़ियों में

जब तुम मेरे पास थी

अगर ये गाँठ

खुल जाए

तो शायद

मैं तुम्हें भूल पाऊं

पर तुमने भी तो

गाँठें इतनी कसकर बाँधी हैं

बेचारा दिल मेरा

कसमसाता है

उन बंधे हुए

गाँठों के अन्दर

पर कुछ कह नहीं पाता

तुमने जो बाँधा था उसे

मैं कोशिश करता हूँ

उन्हें खोलने की

तुम्हें भूलने की

पर उन गाँठों को

खोल नहीं पाता हूँ

और मैं तुम्हें

भूल नहीं पाता हूँ


2 comments:

  1. तो कोशिश भी क्यूँ करते हैं ......और ये जो दिल उन यादों की गाठों में कसमसाता रहता है ...खुद भी कहाँ आजाद होना चाहता है ......बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ...

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  2. अति सुंदर!
    बहुत बहुत बधाई...!!

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