Saturday 6 October 2012

नींद और ख्वाब

नींद आने लगी है 
शायद ख़्वाबों ने जोर मारा है 
कोई मिलने को आतुर है ख़्वाबों में 

आज रात ख़्वाबों में उनसे मिलना है मुझको 
ख़्वाबों में मिलने उनसे अब सोना है मुझको 

चलो नींद की आगोश में खो जाते हैं 
ख़्वाबों के वास्ते चलो हम सो जाते  हैं 

आइये आपको नींद के आगोश में पहुंचा दूं 
मिलने का वादा किया है ये भूलिएगा नहीं 

मिलना तो है हमको अब जिंदगी भर के लिए 
इक रात काफी ना होगी दिल की बात के लिए 

जो अब नहीं सोया तो सब गडबड हो जायेगा 
बोझल पलकों से हमारे इश्क का भेद खुल जायेगा 

आँखों से नींद उड़ाना उन्हें खूब आता है
दीवाना बनाकर सताना उन्हें खूब आता है

ख़्वाबों में भी यूँ ही परेशां किया आपने
जब भी मिलने का वादा लिया हमने

नींद तो तुम साथ लेकर गई थी कल रात
हम जागते रहे आँखों में तेरे ख्वाब लिए

नींदें उड़ा कर हमारी हमारा हाल पूछते हैं
कितनी मासूमियत से वो सवाल पूछते हैं

सपनों में तेरे मेरा यूँ आना जाना है
जैसे आँखों से तेरे मेरा दोस्ताना है



1 comment:

  1. भावप्रधान रचना के लिए धन्‍यवाद...!!

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