Saturday 6 October 2012

कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १४)

आप तो जो भी कहेंगी वो तरन्नुम ही होगा 
आपकी जुबान से निकला है तो वो तबस्सुम ही होगा

आँखों ने तेरे मुझसे बहुत पहले कहा था 
तेरे दिल की बातों का खुलासा किया था 

चाहते हो अगर तुम मुझको इस क़दर 
कहते क्यूँ नहीं खुल कर किसका है डर 

मुझे कब से अहसास था तुम्हारे प्यार का 
क्या करूँ मौका ही नहीं मिला इकरार का 

इलज़ाम जो भी लगाना है लगा लो मुझ पर 
उस इश्क का क्या करूँ जो तुमसे हो गया है हमें 

दूर रह कर भी तुम मेरे सामने होते हो
हर शय में जो तुम नज़र आते हो मुझे

अपनी कुछ और तस्वीरों से मेरा दीदार कराओ ना
तुम्हें अपनी आँखों में बसाने को जी चाहता है मेरा

छु कर देखा तुम्हे तो तुम सिहर गई
मुझे लगा मेरे छूने से तुम डर गई 

जब नहीं होता मेरे पास यार मेरा 
दिल भर आता है उसकी याद से मेरा

अपनी तस्वीरों को रख कर अपने क़ैद में वो
अपने दीदार से करते हैं मेरे दिल को महरूम

हम कुछ चुरा तो ना लेंगे आपकी जागीर से
आखिर चाहा है हमने भी आपको अपने दिल से

अपने अकेलेपन का साथी बना लो मुझे 
मैंने तुम्हे अक्सर तन्हाई में अकेला देखा है 

अब कोई तन्हाई नहीं बस ये महफ़िल है 
और इस महफ़िल में यार मेरा शामिल है

जो तुम चाहो तो हम इस जिंदगी का रुख मोड़ दें
तुम जो चाहो अगर तुम्हारे लिए सब कुछ छोड़ दें

No comments:

Post a Comment