Saturday 6 October 2012

सख्त हृदय तुम्हारा

लौह सदृश

सख्त हृदय तुम्हारा

प्रचंड धुप सा तेवर

कैसे सुनाऊँ तुम्हें मैं

उद्गार हृदय का प्रियवर

समन्दर के लहरों के जैसे

उद्गार उठे हृदय में

देख तुम्हारा प्रचंड रूप पर

रहे हृदय के अन्दर

यूँ ही दबे रहे उद्गार अगर

फूटेंगे लावा बन कर

झुलसा देंगे बगिया सारी

बन कर आग समन्दर

तुम तज कर अपना तेवर

चाँद से थोड़ी शीतलता लो

ओस से लो नर्म ठंढक

मन को कोमल होने दो

बसा लो प्रेम को अन्दर

स्वप्न बन कर

बसने दो आँखों में

खुशबू बन साँसों में

धड़कन बनूँ अगर तुम्हारा

रह के हृदय के अन्दर

प्रेम मय कर दूं मैं तुमको

निकाल सख्त यह तेवर

फर्क स्वयं फिर जान लेना तुम

प्रेम कितना गहरा समन्दर

थाह लगा ना पाओगे तुम

डूब डूब उतराओगे

पर यह तो संभव तब होगा

जब मुझको गले लगाओगे


3 comments:

  1. प्रेम एक एहसास है ....उस में कठोरता कैसी ...

    ReplyDelete
  2. आहा ! प्रेम का समंदर प्रशांत महासागर सा गहरा !!

    ReplyDelete