लौह सदृश
सख्त हृदय तुम्हारा
प्रचंड धुप सा तेवर
कैसे सुनाऊँ तुम्हें मैं
उद्गार हृदय का प्रियवर
समन्दर के लहरों के जैसे
उद्गार उठे हृदय में
देख तुम्हारा प्रचंड रूप पर
रहे हृदय के अन्दर
यूँ ही दबे रहे उद्गार अगर
फूटेंगे लावा बन कर
झुलसा देंगे बगिया सारी
बन कर आग समन्दर
तुम तज कर अपना तेवर
चाँद से थोड़ी शीतलता लो
ओस से लो नर्म ठंढक
मन को कोमल होने दो
बसा लो प्रेम को अन्दर
स्वप्न बन कर
बसने दो आँखों में
खुशबू बन साँसों में
धड़कन बनूँ अगर तुम्हारा
रह के हृदय के अन्दर
प्रेम मय कर दूं मैं तुमको
निकाल सख्त यह तेवर
फर्क स्वयं फिर जान लेना तुम
प्रेम कितना गहरा समन्दर
थाह लगा ना पाओगे तुम
डूब डूब उतराओगे
पर यह तो संभव तब होगा
जब मुझको गले लगाओगे
सख्त हृदय तुम्हारा
प्रचंड धुप सा तेवर
कैसे सुनाऊँ तुम्हें मैं
उद्गार हृदय का प्रियवर
समन्दर के लहरों के जैसे
उद्गार उठे हृदय में
देख तुम्हारा प्रचंड रूप पर
रहे हृदय के अन्दर
यूँ ही दबे रहे उद्गार अगर
फूटेंगे लावा बन कर
झुलसा देंगे बगिया सारी
बन कर आग समन्दर
तुम तज कर अपना तेवर
चाँद से थोड़ी शीतलता लो
ओस से लो नर्म ठंढक
मन को कोमल होने दो
बसा लो प्रेम को अन्दर
स्वप्न बन कर
बसने दो आँखों में
खुशबू बन साँसों में
धड़कन बनूँ अगर तुम्हारा
रह के हृदय के अन्दर
प्रेम मय कर दूं मैं तुमको
निकाल सख्त यह तेवर
फर्क स्वयं फिर जान लेना तुम
प्रेम कितना गहरा समन्दर
थाह लगा ना पाओगे तुम
डूब डूब उतराओगे
पर यह तो संभव तब होगा
जब मुझको गले लगाओगे
प्रेम एक एहसास है ....उस में कठोरता कैसी ...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteआहा ! प्रेम का समंदर प्रशांत महासागर सा गहरा !!
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