Monday 8 October 2012

ज़िन्दगी ने पुकारा हमें

आज अभी अभी

उनकी आवाज़

आई कहीं से

यूँ लगा

ज़िन्दगी ने पुकारा हमें

जैसे

बुझे हुए चिरागों को

शम्मा की

रौशनी मिल गई

साँसों में मेरे

रवानगी आ गई

धडकनें फिर से

सज़ गईं

लहू दौड़ने लगा

रगों में

मिजाज़ में

इक दीवानगी आ गई

ज़िन्दगी से यूँ

रु-ब-रु होना

जैसे मकसद हो

ज़िन्दगी का

वो आवाज़ देते रहें

पुकारते रहें हमें

हम यूँ ही

ज़िन्दगी जीते रहें 

2 comments:

  1. आपकी हर रचना में दिल
    की गहराई तक उतरने की कला है।

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