Wednesday 17 October 2012

मेरा अंश

तुम आई

भोर की पहली किरण बन कर

छा गई मेरे मन पर

फिर बनी तुम

पहली किरण माहताब की

जैसे खुशबू आई

कहीं से सैकड़ों गुलाब की

फिर

धडकनें सजने लगीं

साँसों में रवानगी आ गई

अरमां करवटें बदलने लगे

ख्वाब सुरमई हो गये

भोर की आँखों में

लाल डोरियाँ

रात की नींदों के भेद

खोलने लगे

तन मन अंगडाईयाँ

लेने लगीं

नए अहसासों की कोपलें

फूटने लगीं

जब तुम मेरे ख़्वाबों में

मुझसे मिलने लगीं

जाने क्यूँ

तुम से मिलकर

यूँ लगा मुझे

शायद कभी कहीं

मेरा कोई अंश

मुझसे अलग हुआ था

वो अंश

मेरा मुझे आज

फिर मिल गया है

2 comments:

  1. बहुत खूब लिखा, काफी शिद्दत से महसूस किया है आपने... !!

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  2. ह्रदय स्पर्शी रचना है .... अपना अंश मिल जाना , जीवन में और क्या चाहिए फिर !!!

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