तुम आई
भोर की पहली किरण बन कर
छा गई मेरे मन पर
फिर बनी तुम
पहली किरण माहताब की
जैसे खुशबू आई
कहीं से सैकड़ों गुलाब की
फिर
धडकनें सजने लगीं
साँसों में रवानगी आ गई
अरमां करवटें बदलने लगे
ख्वाब सुरमई हो गये
भोर की आँखों में
लाल डोरियाँ
रात की नींदों के भेद
खोलने लगे
तन मन अंगडाईयाँ
लेने लगीं
नए अहसासों की कोपलें
फूटने लगीं
जब तुम मेरे ख़्वाबों में
मुझसे मिलने लगीं
जाने क्यूँ
तुम से मिलकर
यूँ लगा मुझे
शायद कभी कहीं
मेरा कोई अंश
मुझसे अलग हुआ था
वो अंश
मेरा मुझे आज
फिर मिल गया है
भोर की पहली किरण बन कर
छा गई मेरे मन पर
फिर बनी तुम
पहली किरण माहताब की
जैसे खुशबू आई
कहीं से सैकड़ों गुलाब की
फिर
धडकनें सजने लगीं
साँसों में रवानगी आ गई
अरमां करवटें बदलने लगे
ख्वाब सुरमई हो गये
भोर की आँखों में
लाल डोरियाँ
रात की नींदों के भेद
खोलने लगे
तन मन अंगडाईयाँ
लेने लगीं
नए अहसासों की कोपलें
फूटने लगीं
जब तुम मेरे ख़्वाबों में
मुझसे मिलने लगीं
जाने क्यूँ
तुम से मिलकर
यूँ लगा मुझे
शायद कभी कहीं
मेरा कोई अंश
मुझसे अलग हुआ था
वो अंश
मेरा मुझे आज
फिर मिल गया है
बहुत खूब लिखा, काफी शिद्दत से महसूस किया है आपने... !!
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शी रचना है .... अपना अंश मिल जाना , जीवन में और क्या चाहिए फिर !!!
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