Saturday 6 October 2012

कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १६)

ख्वाहिश है कि वो भी करें इज़हार-ए-इश्क हमसे

डर है कहीं हम यूँ ही दिल ना लगाए बैठे हो उनसे


मेरे अफ़साने का ज़माने ने इतना फ़साना बनाया

उनको लगा हम ने उनसे मिलने का बहाना बनाया


गोया इश्क किसी ने अब तक नहीं ज़माने में किया

इक हमने क्या किया कि चर्चा सारे ज़माने ने किया


वो इस कदर बेखबर बैठे हैं हमारे हर इशारे से

कहते हैं हमारे आने की आहट वो पहचानते हैं


होता है यूँ कि जब इश्क में डूबे होते हैं वो 

मुस्कराहट खुद-ब-खुद उनके लब चूम लेती है 


यूँ मुस्कुरा कर बात टालना खूब आता है उनको 

मेरे इंतज़ार में रंग भरना खूब आता है उनको 


मुझे यकीं था ये दिल मेरा जो कह रहा था 

वो तुम्हारे दिल से पूछकर ही कह रहा था 


तेरा ये मुस्कुराना यूँ शरमाना नज़रें झुकाना 

शायद मेरी तकदीर का ही है इक फ़साना 


अब तो बस ये हसरत है दिल में 

उनकी हर खुशियाँ उनको मिले 


साथ उनका जो मिला ख़ामोशी भी गाने लगी 

रात तारों की बारात में चांदनी गुनगुनाने लगी 


दिल की उदासी का सबब ये है 

उनकी जुदाई से हम डरने लगे हैं 


मेरी जिंदगानी तुम हो मेरी रवानी तुम हो 

खत्म ना हो कभी जो वो कहानी तुम हो 


ये किस्सा तो सदियों पुराना है 

हमारा दिल तुम्हारा दीवाना है 


अंत नहीं इस इज़हार-ए-इश्क का 

चलो मान लेते हैं हमें मोहब्बत है 


शुक्रिया तुम्हारा ए दोस्त मेरी जिंदगी में आने का

वादा निभाया तुमने मुझे जनम जनम में पाने का


तुम मेरी जिंदगी में आकर मेरे महबूब बन गए

कोई क्या जाने तुम मेरे अरमान के मंसूब बन गए


यूँ शुक्रिया मेहरबानी ना कह मेरे अज़ीज़

तेरी जगह तो है इस दिल के बहुत करीब




























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