Saturday 6 October 2012

कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १५)



अब गुनाह का कौन कहे वो तो सितम पर सितम किये जाते हैं हमपर
हमारी नादानियों को हमारा गुनाह बता कर जुल्म किये जाते हैं हम पर

जब से छेड़ा है मैंने उनकी फुर्सत में इक अफसाना
अपने अपने फ़साने ले पहुंचा उनके पास ये ज़माना

इन दिनों उनसे कहाँ कोई राज़ छुपा पाता हूँ

मेरी साँसे जो रेहन हैं उनकी साँसों के पास


हम कैसे समझे उस इश्क की जुबां
जो वो मुझसे ख़ामोशी से कह जाती है

तेरे अहसासों ने मुझको अक्सर ये बताया है
तु मेरे दिल के पास ही नहीं तू मेरा हमसाया है

जाने तुम्हे ये अहसास है या नहीं
तुम्हारी बातों से मैं खो गया यहीं

अगर आपकी तन्हाईयों में हम खलल डाल रहे हों
तो दूर कर लूँगा मैं खुद को आपकी हर महफ़िल से
  
उनके दिल से रु-ब-रु होता हूँ हर पल
मुझे तो वो बहुत हसीं नज़र आता है
  
अपनी मोहब्बत में वो यूँ फ़ना हो गया
बेखुदी में भी तुमको वो खुदा कह गया
  
तुम को यकीं के हद से आगे चाहा है इस दिल ने
बस यही इल्तिज़ा है कोई कहर न टूटे इस दिल पे

बहुत खफा खफा से लगे वो आज मेरे सरकार
किसी नाचीज़ ने लगता है दुखाया है दिल उनका

मुस्कुरा कर वो हर बात टाल जाते हैं
हम उनकी इस अदा पर मात खाते हैं

ख़्वाबों में मिलकर आपके दीदार की तलब हो रही है 
इक ज़रा रुखसार से पर्दा हटा दीजे तो बात बन जाये 

यूँ दर्द ना समेटो दिल में अपने और ना सिलो यूँ अपनी जुबां को 
कभी गुबार बन कर निकला तो तहस नहस कर देगा ये जहां को 


No comments:

Post a Comment