मृग तृष्णा
तपते जलते रेगिस्तानों में
प्यासे मृग के
नयनों को भरमाती
मन में आस जगाती
पास आते ही
दूर चली जाती
मृग की व्याकुलता
और बढ़ाती
पर कभी भी ना
पास आती
अंततः
प्यासे मृग के
प्राण हर जाती
और यह
मृग तृष्णा कहलाती
तपते जलते रेगिस्तानों में
प्यासे मृग के
नयनों को भरमाती
मन में आस जगाती
पास आते ही
दूर चली जाती
मृग की व्याकुलता
और बढ़ाती
पर कभी भी ना
पास आती
अंततः
प्यासे मृग के
प्राण हर जाती
और यह
मृग तृष्णा कहलाती
अनोखी हमेशा की तरह!!
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