Saturday 20 October 2012

दिल से ...

पाने की खुशी
खोने का डर
क्यूँ जीवन भर ?


जाने क्यूँ लगता है 
अपना कोई रूठा है 
जिंदगी जैसे 
सपना कोई झूठा है 


जी चाहे
हर घड़ी
तुझे निहारूं
तुझे दुलारुं
जीवन अपना
तुझ पर वारूँ 


भोर का सूरज
लाली उसकी
सिन्दूर तुम्हारा


तुम सावन
नेह बरसा
भींगे हम 


यूँ तेरा आना
नज़रें झुकाना
और दिल पे छा जाना


तपती धूप
तुम्हारा साया
मन हरसाया


तुम्हारी मुस्कान
खुशियों की बरकत
मैं धनवान 


तेरा चेहरा
तेरी मुस्कराहट
मेरी खुशियों की आहट 


ये बंधन 
तुझसे नेह का है 
मेरा 
तुझसे स्नेह का है 


2 comments:

  1. वाकई दिल से .........दिल तक.....:)...मनभावन पंक्तियाँ

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  2. बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
    अति उत्तम..

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