इस जीवन का
एक सत्य ...
जन्म
दूसरा सत्य ...
मृत्यु
दोनों सत्यों को जोड़ती ...
आत्मा
एक में ....
अंतर्गमन आत्मा का
दुसरे में ...
वहिर्गमन आत्मा का
इन दोनों के मध्य
विरोध ...प्रतिरोध
प्यार ...दुलार
राग .....द्वेष
विरह ....मिलन
और
अंततः
पंचतत्व में विलीन
फिर क्यूँ
मोह इस भोग का
क्यूँ नहीं
अंत इस रोग का
एक सत्य ...
जन्म
दूसरा सत्य ...
मृत्यु
दोनों सत्यों को जोड़ती ...
आत्मा
एक में ....
अंतर्गमन आत्मा का
दुसरे में ...
वहिर्गमन आत्मा का
इन दोनों के मध्य
विरोध ...प्रतिरोध
प्यार ...दुलार
राग .....द्वेष
विरह ....मिलन
और
अंततः
पंचतत्व में विलीन
फिर क्यूँ
मोह इस भोग का
क्यूँ नहीं
अंत इस रोग का
सही कहा आपने--
ReplyDelete---फिर क्यूँ मोह इस भोग का
क्यूँ नहीं अंत इस रोग का
यदि विरोध-प्रतिरोध,प्यार-दुलार,राग- द्वेष और विरह -मिलन वाकई रोग हैं तो इनका अंत होना ही चाहिए .......सुंदर पंक्तियों के लिए बधाई