जब तुम नहीं थे,
हर साँस में सूनी वीरानियां थीं।
लब खामोश थे, दिल बेसबर था,
हर मोड़ पे अधूरी सी दास्तानियां थीं,
और उन दास्तानों में बसी तन्हाइयां थीं।
जब तुम नहीं थे,
हर सुबह किसी साया सी लगती थी।
वो ख्वाब जो आँखों में जिंदा थे,
अब सिर्फ़ लम्हों की राख में जलती थीं,
और राख में दबे कुछ तन्हा ग़म थे।
जब तुम नहीं थे,
हर मौसम पे दर्द उदासी सी खड़ी थी।
जो आवाज़ें साथ थीं कल तक,
अब सिर्फ सन्नाटों में गुमशुदा सी घड़ी थी,
जहाँ हर धड़कन के पीछे तन्हाइयां बड़ी थीं।
जब तुम नहीं थे,
हर राह पे बिछी वीरानियां थीं।
तेरे बिना ये ज़िंदगी ठहरी ठहरी थी,
हर खुशी के नीचे कुछ टूटे हुए ख़्वाब थे,
और उन ख़्वाबों में लिपटी तन्हाइयां थीं।
No comments:
Post a Comment