वफ़ा पे मेरे
उनको यकीं नहीं था
कुछ भी नहीं था
बस यही दिल-ए-ग़मी था
निगाहें झुकी थीं
लबों पे ख़ामोशी थी
हर बात में बस
एक अधूरी सी कमी थी
सदाएँ दीं कितनी
सुनी भी नहीं थीं
क़िस्मत में शायद
जुदाई ही लिखी थी
मेरा सब्र टूटा
उम्मीद भी रुकी थी
साँसों में जैसे
सिर्फ़ तन्हा सी नमी थी
ख़्वाबों की बस्ती
वीरान हो चली थी
हर मुस्कान भी अब
ग़मगीन हो चली थी
वो जज़्बात मेरे
अजनबी बन गए थे
जो लफ़्ज़ थे अपने
बेज़ुबान बन गए थे
हर मोड़ पे मैंने
बस उनको पुकारा
हर दर्द ने लेकिन
बस मेरा दिल उजाड़ा
छलके थे आँसू
पर वो भी छुपा लिए
टूटे हुए अरमान
लबों पे सजा लिए
अब रह गई है
बस एक तन्हाई
न शिकवा किसी से
न कोई रुसवाई
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