इतने दिनों में अब आई है
रुत ये मिलन की,
तेरे मेरे दरमियाँ फिर से
बात चल पड़ी है दिल की।
हवा भी तेरे नाम की
कुछ गीत गुनगुनाने लगी है,
छू के तुझे जब गुज़री है ये
मुझे तेरी खुशबू सी आने लगी है
इन खामोशियों में अब
तेरी आवाज़ सुनाई देती है,
हर शाम मेरी तुझसे
थोड़ी सी और जुड़ती जाती है
तेरी मुस्कान में जैसे
छुपा हो सारा जहां मेरा,
हर पल तुझमें ढूंढूं मैं
सपनों का कारवां मेरा।
चांदनी भी अब लगती है
तेरे रूप की परछाई सी,
और रातें बन गई हैं
तेरे नाम की शहनाई सी।
धड़कनों का सिलसिला
अब तुझसे ही शुरू होता है,
मिलन की इस रुत में
तेरे इश्क पे गुरूर होता है
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