जब तुम नहीं थे,
सपनों के मंज़र में वीरानियां थीं,
हर धड़कन में छिपे कितने ग़म थे,
इन यादों के सागर में बहते आंसू थे, दिल के कोने में बस तन्हाइयां थीं।
जब तुम नहीं थे,
सुबह की रौनक में भी वीरानियां थीं,
खामोश लम्हों में जमा मेरे ग़म थे,
उन भूले-बिसरे किस्सों के आंसू थे,
एक खोए हुए कल की तन्हाइयां थीं।
जब तुम नहीं थे,
हर नज़र में वीरानियां थीं,
अनकहे दर्द में डूबे सारे ग़म थे,
बीते लम्हों के गवाह मेरे आंसू थे,
गुज़रे कल की सुनसान तन्हाइयां थीं।
जब तुम नहीं थे,
आशाओं की राह में भी वीरानियां थीं,
समय के पहिये पर दर्द भरे ग़म थे,
हर धुंधली याद में संजोए सूखे आंसू थे,
और मेरी तन्हा राहों में बस तन्हाइयां थीं।
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