जब हम तुम मिले थे
छोटी छोटी ख्वाहिशें थीं
दिल में कितने अरमान थे
मासूम सी गुजारिशें थीं
जब हम तुम मिले थे
छोटी-छोटी ख्वाहिशें थीं,
तितलियों के पीछे भागती उम्मीदें थीं,
हवाओं में उड़ते सपने थे।
दिल में कितने अरमान थे,
तारे तोड़ लाने की जिद थी,
रंगीन कागज़ों पर लिखी छोटी-छोटी दुआएं थीं,
हर मुस्कान में एक नई दुनिया बसती थी।
मासूम सी गुजारिशें थीं,
हाथ थाम कर बस यूं ही चलने की,
भीगी-भीगी आँखों से चुपचाप सब कुछ कह देने की,
एक नज़्म बन जाने की ख्वाहिश थी,
जिसे सिर्फ हम दोनों ही समझ पाते।
जब हम तुम मिले थे
छोटी-छोटी ख्वाहिशें थीं,
तितलियों के पीछे भागती उम्मीदें थीं,
हवाओं में उड़ते सपने थे,
नन्हीं मुस्कानों में छुपी बड़ी-बड़ी बातें थीं।
दिल में कितने अरमान थे,
तारे तोड़ लाने की जिद थी,
बिना वजह हँसने की, बिना सोच रो पड़ने की आदत थी,
हर मुलाकात में ज़िन्दगी खोजने की चाहत थी।
मासूम सी गुजारिशें थीं,
साथ चलते हुए वक़्त को रोक लेने की,
छोटे-छोटे लम्हों में उम्र भर का प्यार ढूँढ लेने की,
एक नज़र में सारी बातें कह देने की,
और फिर उसी नज़र में खो जाने की।
अब जब पलट कर देखता हूँ,
वो खिलखिलाते दिन, वो बेपरवाह रातें,
सब कुछ किसी पुराने ख्वाब जैसा लगता है,
पर दिल जानता है —
पहली बार जो धड़कनें तेज़ हुई थीं,
वो धड़कनें अब भी कहीं न कहीं ज़िंदा हैं।
बस, मासूमियत की उन गलियों में...
जहाँ हम तुम पहली बार मिले थे
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