Friday, 25 April 2025

तुझको ख़ुदा जानकर

 तुझको ख़ुदा जानकर, सजदे में जो सर झुकाया,

ज़माने ने मुझको काफ़िर क्यों बतलाया


तेरी निगाहों में था, नूर-ए-हक़ीक़त जैसा,

मैंने उसी रोशनी में, अपना वजूद मिटाया।


लबों पे तेरा ही नाम, दिल में तेरा ही साया,

हर एक दुआ में मैंने बस तुझको ही पाया


ये दिल कहीं भी सुकून न पाया 

तेरे दर पे आके, रूह ने चैन पाया।


तू जो मिला तो जैसे, मिल गई मुझे ज़िंदगी,

वरना हर सवाल ने, मुझको बहुत तड़पाया।


इश्क़ तेरा अब मेरे, सज्दों का सिला ठहरा,

वरना मैंने तो खुद को, हर मोड़ पे गंवाया।


तेरे ख़याल में डूबा, हर पल खुदा से जुड़ता,

तू पास ना था पर ये दिल तुझसे ही जुड़ता।


मैंने जुनूँ में तेरे, हर रंग को सच माना,

झूठा था ये ज़माना, मैंने तेरा ही हक़ माना।


जो भी सज़ा मिली हो, वो भी करम लगी है,

तेरे गुनाह में भी, मुझको रहम लगी है।


राख हुई हर चाहत, फिर भी तुझे पुकारा,

हर दर्द ने मुझे बस, तेरा ही नाम दे डाला।


इश्क़ में जो सलीबें, खुद पे उठाई मैंने,

वो भी तुझे लगा कर, सजदा निभाई मैंने।


ये दिल कह रहा है, हर दर्द है मेरा इनाम,

तेरे ग़म ने भी दी है तेरे मिलने का पैग़ाम

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