Friday, 25 April 2025

जब तुम नहीं थे - 1

 जब तुम नहीं थे,

हर साँस में बस वीरानियां थीं।

लब खामोश, नज़रें नम थीं,

बिखरे लम्हों में चुभते ग़म थे,

और यादों की धुंध में तन्हाइयां थीं।


जब तुम नहीं थे,

दिल के आँगन में वीरानियां थीं।

हर शाम बुझी बुझी सी थी,              

आंसुओं में डूबी कोई कहानी थी, 

मेरी चुप्पियों में सिसकती तन्हाइयां थीं।


जब तुम नहीं थे,

हर लफ्ज़ में गूँजती वीरानियां थीं।

तेरे बिना सब अधूरा सा था,

हर ख़ुशी के पीछे दबे ग़म थे,

और रातों में जागती तन्हाइयां थीं।


जब तुम नहीं थे,

हर राह पर बिछी वीरानियां थीं।

मुझे ढूंढते वो दिन चुपचाप थे,

हर कोना तेरे बिना खाली सा था,

और उन खामोश पलों में तन्हाइयां थीं।

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