दिल में तुमसे बिछड़ने का गम था,
आँखों में कोई ख़्वाब अधूरा सा नम था।
हर लम्हा तेरी याद का साया रहा,
ज़िंदगी का हर मोड़ तन्हा सा कम था
हर बात में तेरा ही ज़िक्र आ गया,
लबों पे तेरा नाम बेमौसम आ गया।
तेरे बिना सब अधूरा सा लगता है,
जैसे कोई गीत बिना सरगम रह गया।
रातों की तन्हाई तुझसे बात करती है,
ख़ामोशी भी अब तेरी आवाज़ लगती है।
दिल ने कब चाहा था यूँ दूर हो जाना,
मगर किस्मत को शायद ये मंज़ूर था।
तेरे जाने के बाद सन्नाटा बोलता है,
हर कोना तेरी याद में रोता है।
जिस चाय में पहले मिठास थी तेरे नाम की,
अब वही चाय भी बेस्वाद सा होता है।
आईने से अब बात नहीं होती,
ख़ुशबू भी तेरे बिना महकती नहीं होती।
वो मौसम, वो शामें, सब ठहर गए हैं,
जैसे ज़िंदगी अब चलती ही नहीं होती।
ख़त जो रखे हैं तेरे नाम के,
अब राख बनकर उड़ते हैं शाम के।
उदासियाँ भी अब थक चुकी हैं,
तेरी खामोशी से डरने लगी हैं।
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