Tuesday 8 January 2013

कभी

कभी

हम उनके

चाहतों के साए में 

पलते थे 

कभी 

धड़कन बन कर 

उनके दिल में 

मचलते थे 

कभी

प्यार की आंच से

ख्वाब बन कर

आँखों में

पिघलते थे

कभी

उनके दिल से

इस दिल के अरमान

निकलते थे

कभी

हम हाथ थामे

साथ साथ

यूँ ही

चलते थे

कभी

राहों में उनके

हमारे प्यार के दिए

जलते थे

कभी

उनके जुल्फों के साए में

बैठे बैठे

न जाने कब ये दिन

ढलते थे

कभी

दिन के ढलते

रात हर महफ़िल में

उनकी आँखों से पीकर

हम खुद ही

सम्हलते थे

बस

उन लम्हों की यादों को

सीने से लगाए

यूँ ही जीता हूँ

कि

कभी

जो तुम कहीं से

फिर आ जाओ

तो हर उन लम्हों को

हम फिर से जी लेंगे

जिन लम्हों में

हम

कभी

साथ साथ

ज़िन्दगी को यूँ ही

जिया करते थे










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