Tuesday 8 January 2013

सवेरे का सूरज

कभी ऐसा हो कि

सवेरा हो

पर उस सवेरे से पहले

सवेरे का सूरज देखने को

मैं ना रहूँ

उस सवेरे से पहले

किसी एक पल में

मेरे सारे पल ख़त्म हो जाएँ

और मैं

उस सवेरे के सूरज से

अनजान रहूँ

फिर क्या

उस सवेरे के सूरज की

किरणों से

तुम मेरा होना या ना होना

पकड़ पाओगे

नहीं न !

इसलिए तो कहता हूँ

मैं इक हवा का झोंका हूँ

आया हूँ

कुछ पल बह कर

जाने को

वो पल जब ख़त्म हो तो

मुझे रोको नहीं

जाने दो

क्योंकि

कोई और हवा का झोंका

बहता हुआ आएगा

और मेरी जगह लेगा

और दुनिया

यूँ ही सतत चलती रहेगी













No comments:

Post a Comment