Tuesday 8 January 2013

नया सहर

मेरे किसी रात की

सहर न हो अगर कभी

ये चिराग जलते जलते

बुझ गयी जो अगर कभी

तो मुझको मत ढूंढना यारों

गम में मत डूबना यारों

चीर निद्रा में सोने के बाद

मैं नए सहर में जागूँगा

किसी नए शहर में आऊंगा

जो यह रूप न फिर धर पाया

तुमको अगर मैं नहीं नज़र आया

धीर तुम मत खोना यारों

भीर तुम मत होना यारों

मैं फूल बनकर आऊंगा

उन राहों में बिखर जाऊँगा

जिन राहों पर हम साथ चले

गुलमोहर के साए तले

या फिर

मैं पंछी बन कर आऊंगा

प्यार के नगमे सुनाऊंगा

जो हमने गाये थे कभी

साथ गुनगुनाये थे कभी

अगर जो

मैं भंवरा बन कर आया

और फूल फूल मंडराया

मेरी गुन गुन सुनकर जानोगे

वो मैं ही हूँ मानोगे

पर कमी हमारी खलेगी ज़रूर

रोने को भी होगे मज़बूर

चाहे जो भी रूप धर आऊंगा

फिर से वही खुशियाँ ले आऊंगा





2 comments:

  1. बहुत खूब....
    सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  2. कितनी सुंदर और पवित्र चाह
    वाह

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