Sunday 13 January 2013

अभिमान

देखता हूँ जब तुम्हें

यूँ ही बैठे बैठे

कभी कोने से नैनों के

भर उठता है मन

अभिमान से

शायद

तुम्हें पाने का अभिमान

या फिर तुम्हारा

यूँ मेरे होने का अभिमान

अभिमान तुम्हारे प्यार का

अभिमान तुम्हारे दुलार का

अभिमान तुम्हारी फ़िक्र का

अभिमान तुम्हारे ज़िक्र का

बस यूँ ही अभिमान से भरे हुए मन में

उठते हैं हाथ दुआओं में

कि हर जीवन में

हे ईश्वर

मेरे इस अभिमान का

मान रखना

और हर जनम

तुम यूँ ही

मेरा अभिमान बनना

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