तुम्हारे स्पर्श को
क्यूँ मेरा मन
यूँ हर पल तड़प तड़प जाता है
क्यूँ मेरा मन
तुम्हारे पास आने को
हर पल छटपटाता है
और जब कभी
मेरा मन
तुम तक पहुँच भी जाता है
तुमको छुए बिना ही
तमसे मिले बिना ही
क्यूँ वापस चला आता है
ये मेरा मन
तुमको सदियों से चाहता है
पर तुमसे कह नहीं पाता है
कैसे इस मन को समझाऊं
मैं कैसे इसको बतलाऊं
तुम मेरी कल्पना हो
और कल्पना को कभी
किसी ने छुआ है आज तक
पर मेरा मन
फिर भी तुमको छूने के लिए
हर पल छटपटाता है
तुम्हारे पास आने को
तड़प तड़प जाता है
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