Wednesday 23 January 2013

मेरा मन


तुम्हारे स्पर्श को 

क्यूँ मेरा मन

यूँ हर पल तड़प तड़प जाता है 

क्यूँ मेरा मन

तुम्हारे पास आने को   

हर पल छटपटाता है 

और जब कभी 

मेरा मन 

तुम तक पहुँच भी जाता है 

तुमको छुए बिना ही 

तमसे मिले बिना ही 

क्यूँ वापस चला आता है 

ये मेरा मन 

तुमको सदियों से चाहता है 

पर तुमसे कह नहीं पाता है 

कैसे इस मन को समझाऊं

मैं कैसे इसको बतलाऊं

तुम मेरी कल्पना हो 

और कल्पना को कभी

किसी ने छुआ है आज तक

पर मेरा मन  

फिर भी तुमको छूने के लिए 

हर पल छटपटाता है 

तुम्हारे पास आने को

तड़प तड़प जाता है  

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