तेरा मुजस्सम हुस्न देख कर यूँ लगता है मुझे
तुझे बनाकर खुदा भी अपना हुनर भूल गया है
तेरा मन
मेरा दर्पण
मुझको " मैं " दिखलाये
मेरे थोड़े से गुण का
गान मुखर हो तू गाये
मेरे सारे दुर्गुण अवगुण
तुने भले लिए छुपाये
तेरा मन
मेरा दर्पण
मुझको " मैं " दिखलाये
मैं क्यूँ ढूढूँ यहाँ वहाँ
जब सब तुझमें नज़र आये
कौन कहता है तस्वीरों की जुबां नहीं होती
नहीं तो इनसे मोहब्बत यूँ बयां नहीं होती
तारीफ़ करूँ क्या उस हुस्न की जिस हुस्न पर मैं मरता हूँ
कहीं वो हुस्न खफा न हो जाये इस बात से बस मैं डरता हूँ
जब भी हुस्न गुरूर करता है इश्क से
इश्क सजदे में झुकता है उस हुस्न के
तेरा इश्क मुझको अक्सर इतना तड़पाता है
मेरा ये दिल बेचारा तेरे इश्क से घबराता है
हमने तो तुझे खुदा मान कर तुझसे मोहब्बत की है
अपने तस्सवुर में भी तुझे पूजा है तेरी इबादत की है
मेरे हर इंतज़ार का अंत बस तेरा दीदार है
मेरी मोहब्बत की शरुआत तेरा इकरार है
अपने उन खवाबों में कुछ ख्वाब मेरे भी बुन लेना
अगर मिले कुछ फूल चमन में मेरे लिए चुन लेना
ये नज़र बनी है बस तेरे लिए हमदम
जिधर भी देखूं तू ही तू नज़र आता है
वो मिलते हैं मुझसे हरदम इक अजनबी की तरह
पर छुपा रखा है मुझको दिल में करीबी की तरह
आज उनको देखा जाने कितने दिनों के बाद
दिल में फिर से अरमानों के बारात निकल पड़े
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