छिन्न भिन्न कर
नारीत्व उसका
दरिंदे
तुम कैसे हंस सकते हो
जिस कोख से
तुमने जनम लिया
उस कोख को
कैसे डंस सकते हो
उस कोख की बददुआ
तुम्हें ऐसे लगे
कि तुम जी कर भी
मृत से बदतर रहो
अपने अगले जनम के लिये तुम
इंसान तो क्या
पशु की कोख को तरसो
व्यथित है
आज हर कोई
तुम्हारे इस दुराचरण से
कितनी विकृत है
तुम्हारी सोच
और
तुम्हारा संस्कार
कि फर्क नहीं समझ आया तुम्हें
क्या सदाचार है
क्या दुराचार
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