Monday 31 December 2012

कुछ ख्याल दिल से ......


रूह के बिना कभी कोई जिस्म मुक़म्मल हुआ है कभी
'गर रूह नहीं साथ तो जिस्म क्या ख़ाक जिया है कभी

तुम रूह हो इस जिस्म की जिसपर मेरा नाम लिखा है 
यूँ ना अनजान रहो उस शय से जिसपर मेरा नाम लिखा है

जिक्र-ए-मोहब्बत कभी उनसे सुने तो कोई बात बने 
हम तो अपना हाल-ए-दिल उनसे रोज़ ही बयां करते हैं 

जब तू मेरे सामने होती है दिल शायराना हो जाता है 
कहना चाहता हूँ जो भी वो शे'र बन बयां हो जाता है 

रूह के बिना कभी कोई जिस्म मुक़म्मल हुआ है कहीं 
'गर रूह नहीं साथ तो जिस्म क्या ख़ाक जिया है कभी 

तुम रूह हो इस जिस्म की जिसपर मेरा नाम लिखा है 
यूँ ना अनजान रहो उस शय से जिसपर मेरा नाम लिखा है 

जब भी आप होती हो सामने दिल की बात यूँ ही निकल जाती है 
बहुत चाहा रोक लूं इसको पर आपको देखते जुबां फिसल जाती है 

भटकता था मैं दर-ब-दर इक आशियाने की खोज में 
मालूम नहीं था वो आशियाना मेरा तेरे दिल में था

तेरी हर इक लफ्ज़ मेरी जिंदगी बन जाती है 
आफताब बन जब तू मेरे आसमां में आती है

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