कुछ मुझसे हुई नाफरमानियाँ कुछ उनको रहीं बदगुमानियाँ
हम वफ़ा की कसमें खाते रहे पर वो दे गए हमें ये तन्हाइयाँ
बरबादियों के दौर से निकला जो मैं मुक्कमिल
हैरत में पड़ गए सब कैसे पाई मैंने यह मंजिल
मोहब्बत की दुश्वारियों से कब मैंने निज़ात माँगा था
इन दुश्वारियों को देख कर बस उनका साथ माँगा था
वो पूछते हैं मेरी खैरियत इतने प्यार से
बीमारी में भी खैरियत में पाता हूँ खुद को
मंजिलों पर पहुचने को वैसे तो कई रास्ते थे
हमने वो रास्ता चुना जो तेरी रहगुज़र में था
आज मुद्दतों के बाद उनका यूँ पास आना
जैसे बादलों की ओट से चाँद का मुस्कुराना
यूँ शुक्रगुज़ार नही होते कभी भी अपने दिलवर के
दिलवर तो होते हैं नाज़ उठाने को अपने प्रियवर के
यूँ गम के अंधेरों में क्यूँ करते हो खुद को मशरूफ़
अभी तो जिंदगी के उजालों से होना है तेरा तार्रुफ़
उनको ये गुमान है कि हम उन पर मरते हैं
गुमान उनका सही है हम कहने से डरते हैं
मेरी हर ध्वनि
की प्रतिध्वनि
बस तेरा नाम
बड़ा लुत्फ़ आता है उन्हें यूँ हमको सताने में
उनकी यह तोहमत है कि हम मोहब्बत की कद्र नहीं जानते
अब उन्हें क्या बताये कि कद्र से हम मोहब्बत नहीं जानते
तारीफ़ में उनके जो मैंने कसीदे कढे
बस उन्हें छोड़ कर उसे औरों ने पढ़े
उल्फत के ठिकानों पर परवानों ने छापा मारा
जलकर खाक होने वालों का और कहाँ गुज़ारा
कौन बताए इन हुस्न वालों को
यूँ इश्क को जलाना ठीक नहीं
सताया हो कभी जो आपको खुदा मुझे ना माफ करे
सजदा किया है उम्र भर कभी तो दिल को साफ़ करें
कभी जो सताया हो हमने किसी हुस्न वाले को
खुदा हमें इश्क से महरूम कर दे इसी जुर्म में
तोहमत लगाने की उनकी ये तो पुरानी आदत है
उन्हें क्या बताएं ये तो हुस्न वालों की फितरत है
उनको हम सताए कभी खुदा ऐसी नौबत ना लाये
उनसे ही तो जिंदगी है वो नहीं तो कैसे जिया जाये
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