तुमने बाँधी कैसी ये डोर ..
जिसका ओर ना छोर
बस खींचे तेरी ओर ..
तेरी ओर..तेरी ओर
नयन तके चहूँ ओर
दिखे जो तू किसी ओर
वहीँ पे जागे भोर
ये बारिश की बूँदें
ज्यों आँखों को मूंदें
लगे स्पर्श तुम्हारा
चाँद तारे
कितने सारे
पर इक तुझसे ही
मेरे सारे नज़ारे
प्रेम तुम्हारा
निश्छल निःस्वार्थ
कितना सुन्दर
जीवन का यथार्थ
चाँद सा मुखड़ा
प्यार भरा दिल
हो गई मुश्किल
मेरी
हर सृजन का
स्रोत हो तुम
जीवन का तम
हरने वाली
ज्योत हो तुम
पानी हूँ मैं ...
जिंदगी की रवानी हूँ मैं ...
खोकर मुझको सभ्यताएं खो गयीं ...
मुझको पाकर बहार हर वीरां हो गई ....
जब तेरे नयनों के दीप जले
मेरे नयनों के तले
तब कहीं
चहुँ ओर तम ढले
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