Friday 21 December 2012

सिसकती मजबूरी


सिसक रही है

कोई मजबूरी

किसी अनजाने गलियारे में  

कभी रोशन थी

उसकी भी दुनिया

महफ़िल में चौबारे में

लूट कर

रौशनी उसकी किसी ने

धकेला उसे अंधियारे में

कैसे कोई जतन करे

कि फिर वह

लौट आये उजियारे में

रोशन हो फिर

उसकी महफ़िल

गूंज उठे

खुशियाँ उसके चौबारे में

आओ सब मिलकर

दीप जलाएं

उसके अँधेरे गलियारे में

रोशन हो फिर

उसकी दुनिया

और लौटे वो उजियारे में



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