Monday 31 December 2012

कुछ ख्याल दिल से ......


मंजिल कितनी भी क्यूँ न हो मुश्किल 
हौसला बुलंद हो तो हो जाती है हासिल 

सुलग रही है आग आज हर दिल और दिमाग में 
ज्वाला बन धधक रही है बाती आज हर चिराग में 

यूँ बेसबब तो कभी नहीं रोया मैं इतना 
पाकर भी सब कभी नहीं खोया मैं इतना


उसकी तड़प से सुकून यह दिल अब तभी पायेगा 
जब उसी कष्ट से उन दरिंदों को गुज़ारा जाएगा

कब तक सहते रहेंगे हम इन वहशियों की दरिंदगी 
कब तक लुटाती रहेंगी हमारी जननी यूँ ही जिंदगी 

अब कौन पोछेगा उन आंसुओं को उस माँ की 
जिसकी लाड़ली ने लड़ते लड़ते जान गंवा दी 

सुलग रही है आग आज हर दिल और दिमाग में 
कि जान फिर से आ गई आज इस इन्क़लाब में

दायरों में रहकर अपने 'गर जीना सीख ले इंसान 
राहत भरी होगी ये जिंदगी मुश्किलें होंगी आसान  

गुज़र ही जाएगा यह सफर जब चल पड़े हैं राह पर 
बस मिल जाये तेरी रहगुज़र और तू हो मेरी हमसफर  

गुज़र ही जाना है यह सफर जब चल पड़े हैं इस राह पर 
बस इक हौसला बुलंद हो फिर चाहे जैसी भी हो यह डगर  

काश दुआओं में हमारे इतना असर हो 
कि उस बेबस की रातों की नई सहर हो 

इक अनजाना सा दर्द यूँ ही सीने में चुभता रहा रात भर ..
शायद कहीं कोई मानवता को सरेआम लूटता रहा रात भर 

दर्द में डूबी हुई इक चीत्कार नहीं सुनी किसी ने कल 
मानवता चीख रही थी और घर घर के बंद थे सांकल  

ये कैसी बेरंग बेनूर महफ़िल है जिसमें न गीत है न शहनाई है 
शायद कोई अज़ीज़ खो गया है यहाँ तभी यूँ गम और तन्हाई है 

दरिंदगी यूँ ही अपना रूप दिखाती रही अगर 
चल पड़ेंगीं सब बेटियाँ फिर हिंसा की डगर 

उबल रही है जाने कितने नाज़ुक मनों में प्रतिशोध की ज्वालामुखी 
भस्म हो जायेंगे दुर्योधन दु:शासन सारे कहीं अगर जो वह फूट पड़ी 

तोड़ कर व्यूह हर बाधाओं का जो निकल आये 
नियति भी घबराती है उससे कोई पहल से पहले 

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