आज
कई दिन की ठंढ के बाद
सुबह की खिली खिली धूप
क्यूँ खुशनुमा नहीं लग रही
क्यूँ इसमें वो तपिश नहीं है
क्यूँ खिले फुल
मुरझाये से लग रहे हैं
क्यूँ उदासी मन को निचोड़ रही है
शायद वह नहीं है अब
पर उसकी तड़पती आत्मा
हम सबको झिंझोड़ रही है
उन दरिंदों से
वह अकेली लड़ती रही
फिर मौत से
वह अकेली भिड़ती रही
अब उसकी लड़ाई को
हमें
अंजाम तक पहुँचाना ही होगा
उसकी तड़पती आत्मा को
शान्ति दिलाना ही होगा
जब तक वो दरिंदे जिंदा हैं
दामिनी हम शर्मिंदा हैं
पर आज हर एक ने ठानी है
उनको वही मौत दिलानी है
जिसके वो हक़दार हैं
क्यूंकि
तुम्हारी मौत से
सारी सृष्टि शर्मसार है
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