लेकर भोर की अरुणाई
खिले गोरी की तरुणाई
ज्यों पवन चले पुरवाई
अंग अंग से ले अंगड़ाई
रात गए इस अंगनाई
रात की रानी खिल आई
देख गोरी की अंगड़ाई
मंद मंद वह मुस्काई
जब पिया जी की आहट आई
आहट सुन गोरी घबराई
बुत बनी खड़ी वह शरमाई
मुख मंडल पर लाली छाई
जब पिया मिलन की घड़ी आई
चाँद तारे सारे बने तमाशाई
जब इनके छुपने की बारी आई
तब दिखी इन सब की ढिठाई
गोरी की तो जैसे शामत आई
क्यूँ इन्हें बताया सोच पछताई
चाँद तारे सब निकले हरजाई
कहीं पिया ना रूठें सोच घबराई
अब की जब मिलन की रुत आई
गोरी ने सब से यह बात छुपाई
अपने प्यार को मन में दबाई
आकर अंक में पिया के समाई
बहुत ही सुन्दर ! श्रृंगारित भावों में संयोग के सुखद अहसासों को विविध बिम्बों में चित्रित करती हुई एक सार्थक रचना ! साथ ही साथ उतना ही मनमोहक तस्वीर. साधुवाद... !!
ReplyDeleteछोटी से भैयू की इतनी तारीफ़ सुन भैयू के मुंह से बस आशीष निकले ढेरों ढेरों ......
Deleteसुंदर
ReplyDeleteसजनी भोर ना होती रे
आभार आपका गुड्डो जी ....
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