Saturday 3 November 2012

उसका निर्जल उपवास



कल था उसका निर्जल उपवास।

फिर भी मुख पर अतुलित उजास।।


मन में गर्वित हर्षित अभिलाष।
चारों ओर सजे उमंग-उल्लास।।

सुन्दर दुल्हन सी आभूषित।
सोलह शृंगार से हो सज्जित।।

स्वयं में मेरा संधान करे।
चन्द्र मुख में मेरा रूप भरे।।

असीम प्रेम नैनों में रहे।
चरण रज से मेरी अपनी माँग भरे।।

भावुक, पुलकित, लज्जित होकर।
सिमटी अंक में मेरे खुद को खोकर।।

मेरे सुख में निज सुख को पाए।
जतन करे मुझे कभी दुःख ना आये।।

मेरी आयु उसका अखंड सुहाग।
जीवन में हो बस प्रीति-भाग।।

अब बैकुंठ की मुझको चाह नहीं।
बिन प्रीति मुक्ति की राह नहीं।।

हर सम्भव सुख उस पर वारूँ।
उसकी जय में खुद को हारूँ।।


No comments:

Post a Comment