Sunday 18 November 2012

गणित रिश्तों का

हतप्रभ हूँ मैं यह देख कर 

इंसानी रिश्तों में 

गणित भी कितना हावी है 

वैसे होना तो वही है 

जो अवश्यम्भावी है 

पर फिर भी 

हर रिश्ते में हम 

हर पल 

सुख और दुःख 

ख़ुशी और दर्द 

जोड़ते और घटाते रहते हैं 

कुछ उम्मीदें 

कुछ आशायें 

कुछ सपने 

प्यार के गुणक से 

हर रिश्ते में बढ़ाते रहते हैं 

और जब 

खुद पर बोझ बने 

रिश्तों के बढ़ते गुणक 

बड़ी चालाकी से 

अपनी लाचारगी से भाग देकर 

भागफल में बची खुशियाँ 

अपने हिस्से कर 

अवशेष में बची जिम्मेदारियों को 

दुसरे के हिस्से फेंक आते हैं 

सिर्फ जोड़ घटाव गुना भाग ही नहीं 

रिश्तों के दल दल में 

स्थैतिकी और गतिकी भी 

काफी गहरे तक पैठे हैं 

रिश्तों के इन दाँव पेंच में 

ये भी कुंडली मार कर बैठे हैं 

जब रिश्तों की गरमाहट में 

शक़ का सर्द झोंका 

रिश्तों को छू कर जाता है 

रिश्ते बर्फ से जम जाते हैं 

सब कुछ स्थिर सा हो जाता है 

भाव प्रेम चाहत फिकर 

सब स्थैतिकी के हर सिद्धांत को 

जैसे आत्मसात कर लेते हैं 

स्थिर रह कर अपनी जड़ता से 

मन की हर भावना को जड़ कर देते हैं 

वहीँ जब रिश्तों की गरमाहट में 

प्यार की उष्मा 

दुलार की थपकी से 

फिकर की ओट में 

रिश्तों को 

चाहत की नर्म आंच पर सेकती है 

तो रिश्तों में 

जाड़े की सर्द ठंढक में भी 

गुनगुनी धुप सी गरमाहट भर जाती है 

और उस गर्मी से 

सर्द पड़े रिश्तों के पौधों पर 

प्यार की कलियाँ खिल जाती हैं 

रिश्तों की इस गरमाहट से 

मन खुशियों संग नाचने लगता है 

सपने आकाश चूमने लगती हैं 

अरमानों की बारात सजने लगती हैं 

हर तरफ 

सिर्फ गति ही गति दृष्टिगोचर होती है 

और 

रिश्ते की गतिकी 

मन के हर तार को झिंझोड़ कर 

गतिमान कर देती है 

जब 

हमारे सोच की संकीर्णता 

या फिर 

वृहतता 

तय करती है 

रिश्तों के गणित के समीकरण 

या फिर 

उनकी स्थैतिकी या गतिकी 

तो क्यूँ नहीं 

हम अपनी सोच में 

वो गरमाहट लाते हैं कि 

रिश्तों में 

कुछ घटाने की 

या भाग देने की 

या फिर 

उन्हें जड़ की तरह स्थिर करने की 

कभी नौबत ही न आये 

रिश्तों के इस सफ़र में 

चलते चलते 

कभी कहीं कोई काँटा 

चुभ भी जाए 

तो उस से रिसते घाव पर 

प्यार का मरहम लगा कर 

विश्वास की पट्टी बाँध कर देखो 

तो शायद कभी नासूर न बने 

और फिर 

रिश्तों की गणित में 

सिर्फ 

खुशियों के जोड़ हों 

प्यार के बढ़ते गुणक हों 

विश्वास की गति हो 

और रिश्तों में 

हर तरफ से बस 

वृद्धि ही वृद्धि हो 












 


1 comment:

  1. उम्दा शब्दसंयोजन और भावाभिव्यक्ति

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