हतप्रभ हूँ मैं यह देख कर
इंसानी रिश्तों में
गणित भी कितना हावी है
वैसे होना तो वही है
जो अवश्यम्भावी है
पर फिर भी
हर रिश्ते में हम
हर पल
सुख और दुःख
ख़ुशी और दर्द
जोड़ते और घटाते रहते हैं
कुछ उम्मीदें
कुछ आशायें
कुछ सपने
प्यार के गुणक से
हर रिश्ते में बढ़ाते रहते हैं
और जब
खुद पर बोझ बने
रिश्तों के बढ़ते गुणक
बड़ी चालाकी से
अपनी लाचारगी से भाग देकर
भागफल में बची खुशियाँ
अपने हिस्से कर
अवशेष में बची जिम्मेदारियों को
दुसरे के हिस्से फेंक आते हैं
सिर्फ जोड़ घटाव गुना भाग ही नहीं
रिश्तों के दल दल में
स्थैतिकी और गतिकी भी
काफी गहरे तक पैठे हैं
रिश्तों के इन दाँव पेंच में
ये भी कुंडली मार कर बैठे हैं
जब रिश्तों की गरमाहट में
शक़ का सर्द झोंका
रिश्तों को छू कर जाता है
रिश्ते बर्फ से जम जाते हैं
सब कुछ स्थिर सा हो जाता है
भाव प्रेम चाहत फिकर
सब स्थैतिकी के हर सिद्धांत को
जैसे आत्मसात कर लेते हैं
स्थिर रह कर अपनी जड़ता से
मन की हर भावना को जड़ कर देते हैं
वहीँ जब रिश्तों की गरमाहट में
प्यार की उष्मा
दुलार की थपकी से
फिकर की ओट में
रिश्तों को
चाहत की नर्म आंच पर सेकती है
तो रिश्तों में
जाड़े की सर्द ठंढक में भी
गुनगुनी धुप सी गरमाहट भर जाती है
और उस गर्मी से
सर्द पड़े रिश्तों के पौधों पर
प्यार की कलियाँ खिल जाती हैं
रिश्तों की इस गरमाहट से
मन खुशियों संग नाचने लगता है
सपने आकाश चूमने लगती हैं
अरमानों की बारात सजने लगती हैं
हर तरफ
सिर्फ गति ही गति दृष्टिगोचर होती है
और
रिश्ते की गतिकी
मन के हर तार को झिंझोड़ कर
गतिमान कर देती है
जब
हमारे सोच की संकीर्णता
या फिर
वृहतता
तय करती है
रिश्तों के गणित के समीकरण
या फिर
उनकी स्थैतिकी या गतिकी
तो क्यूँ नहीं
हम अपनी सोच में
वो गरमाहट लाते हैं कि
रिश्तों में
कुछ घटाने की
या भाग देने की
या फिर
उन्हें जड़ की तरह स्थिर करने की
कभी नौबत ही न आये
रिश्तों के इस सफ़र में
चलते चलते
कभी कहीं कोई काँटा
चुभ भी जाए
तो उस से रिसते घाव पर
प्यार का मरहम लगा कर
विश्वास की पट्टी बाँध कर देखो
तो शायद कभी नासूर न बने
और फिर
रिश्तों की गणित में
सिर्फ
खुशियों के जोड़ हों
प्यार के बढ़ते गुणक हों
विश्वास की गति हो
और रिश्तों में
हर तरफ से बस
वृद्धि ही वृद्धि हो
उम्दा शब्दसंयोजन और भावाभिव्यक्ति
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