Monday 5 November 2012

पिया मिलन की घड़ी आई


लेकर भोर की अरुणाई

खिले गोरी की तरुणाई

ज्यों पवन चले पुरवाई

अंग अंग से ले अंगड़ाई


रात गए इस अंगनाई

रात की रानी खिल आई

देख गोरी की अंगड़ाई

मंद मंद वह मुस्काई


जब पिया जी की आहट आई

आहट सुन गोरी घबराई

बुत बनी खड़ी वह शरमाई

मुख मंडल पर लाली छाई


जब पिया मिलन की घड़ी आई

चाँद तारे सारे बने तमाशाई

जब इनके छुपने की बारी आई

तब दिखी इन सब की ढिठाई


गोरी की तो जैसे शामत आई

क्यूँ इन्हें बताया सोच पछताई

चाँद तारे सब निकले हरजाई

कहीं पिया ना रूठें सोच घबराई


अब की जब मिलन की रुत आई

गोरी ने सब से यह बात छुपाई

अपने प्यार को मन में दबाई

आकर अंक में पिया के समाई














4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर ! श्रृंगारित भावों में संयोग के सुखद अहसासों को विविध बिम्बों में चित्रित करती हुई एक सार्थक रचना ! साथ ही साथ उतना ही मनमोहक तस्वीर. साधुवाद... !!

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    1. छोटी से भैयू की इतनी तारीफ़ सुन भैयू के मुंह से बस आशीष निकले ढेरों ढेरों ......

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  2. सुंदर
    सजनी भोर ना होती रे

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