Friday 2 November 2012

तिमिर हटा अपने जीवन का

क्यूँ तम से जीवन के

व्यथित होता है तू

क्यूँ गम से अपने

चैन खोता है तू

क्यूँ नियति को लेखा मान

अपनी किस्मत को रोता है तू

तिमिर हटा अपने जीवन का

कण कण में प्रकाश भर ले

जो बसा मानस पटल पर

प्रेम से तू उसको वर ले


हर तरफ उजास हो जीवन में

तू हर वो जतन कर ले


आशाओं के दीप जला कर

जीवन के तम को हर ले

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