क्यूँ तम से जीवन के
व्यथित होता है तू
क्यूँ गम से अपने
चैन खोता है तू
क्यूँ नियति को लेखा मान
अपनी किस्मत को रोता है तू
तिमिर हटा अपने जीवन का
कण कण में प्रकाश भर ले
जो बसा मानस पटल पर
प्रेम से तू उसको वर ले
हर तरफ उजास हो जीवन में
तू हर वो जतन कर ले
आशाओं के दीप जला कर
जीवन के तम को हर ले
व्यथित होता है तू
क्यूँ गम से अपने
चैन खोता है तू
क्यूँ नियति को लेखा मान
अपनी किस्मत को रोता है तू
तिमिर हटा अपने जीवन का
कण कण में प्रकाश भर ले
जो बसा मानस पटल पर
प्रेम से तू उसको वर ले
हर तरफ उजास हो जीवन में
तू हर वो जतन कर ले
आशाओं के दीप जला कर
जीवन के तम को हर ले
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