Monday 26 November 2012

संस्कारों की धरोहर

सम्हाल रहा हूँ

अपने संस्कारों की धरोहर

अपने काँधों पर

कि

आने वाली पीढ़ी को

सौंप सकूं

यह धरोहर

उन्हें अपने काँधे पर

बिठा कर

क्यूंकि हमने भी

पाया था इसे

पिछली पीढ़ी के काँधे पर

बैठ कर

जब

कुछ दृष्टिगोचर नहीं होता था

खुद के पैरों पर खड़े खड़े

उन काँधों पर बैठते ही

सब कुछ

नज़र आने लगता था

भ्रम और वास्तविकता का फर्क

सही और गलत का अंतर

सत्य और असत्य का भेद

बिना किसी संशय के

आत्मसात हो

आँखों के रास्ते

दिल और दिमाग पर

आधिपत्य जमाते ये संस्कार

कब आकर

इन काँधों पर सज गए

पता ही नहीं चला

अब बारी है हमारी

अगली पीढ़ी को

इन काँधों पर बिठा कर

उन्हें

संस्कारों की धरोहर

सौंपने की

कि फिर

उनके काँधों से

आने वाली पीढ़ियों को

ऐसे ही ये संस्कार

हस्तगत होते रहें

और

हर पीढ़ी


भ्रम और वास्तविकता का फर्क

सही और गलत का अंतर

सत्य और असत्य का भेद

बिना किसी संशय के

आत्मसात कर सके

पिछली पीढ़ी के काँधों पर

बैठ कर












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