Friday 9 November 2012

वह चेहरा

मैं

अतीत की परछाइयों में

उसका चेहरा ढूँढता हूँ

जब कभी

उसकी मुस्कराहट

नाच जाती है

मेरी नज़रों के सामने

हुस्न और इश्क की दुनिया से दूर

चमकता था उसकी आँखों में नूर

चेहरे को उसके जैसे तराशा हो किसी ने

बड़ी फुरसत में बैठ कर

वह चाँद का टुकड़ा था

या

फिर आसमां से आई थी

कोई अप्सरा उतर कर

उसके चेहरे में ढूँढते थे सब

हुस्न मगर

हुस्न तो छुपा बैठा था

उसके दिल के भीतर

वो पलकें उठाती तो

सवेरा होता

सांझ उसके पलकों के

झुकने से आती थी

रात के दामन पर

जुगनुओं सा

चमकता था

उसका नूरानी चेहरा

रात भी मद में डूब जाती थी

पहन कर उसके

हुस्न का सेहरा

वह इंसान थी या

चाँद का अक्श

किसी झील में ठहरा

मैं आज भी यही सोचता हूँ

जब भी उसको याद करता हूँ

कि वह चेहरा था

या फिर

मेरी यादों

कोई सिलसिला



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