Saturday, 10 November 2012

मिलन की बेला

दिल तड़पा है मेरा सदियों

इस एक घड़ी के आने को

जब आई है मिलन की बेला

मुझको खुद में खो जाने दो

घड़ी मिलन की ढल ना जाए

सोये अहसासों को जगाने दो

अपने अधरों के दो प्यालों से

मधुरस आज छलक जाने दो

मादक नैनों की मदिरा पीकर

मुझको आज बहक जाने दो

आओ आलिंगन में तुमको भर लूं

अतृप्त मन की प्यास बुझाने दो

दिल की मुझको परवाह नहीं है

धडकनों को बिखर जाने दो

इन साँसों की खुशबू में खोकर

अब होश मेरे उड़ जाने दो

मन उलझा है तन उलझा है

साँसों को भी उलझाने दो

अब दूरी कोई सही ना जाए

अपनी हस्ती पिघल जाने दो

आज मिलन की इस रैना में

अब जो होता है हो जाने दो

2 comments:

  1. नाजुक अहसासों की खुशबू समेटी एक उम्दा रचना!!!!

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