Friday 2 November 2012

जब तुम मिले थे

तुम मिले मुझे

जिंदगी के जिस मोड़ पर

जिंदगी ठहर गई

वहीँ पर

पर

वक्त चलता रहा

और

हम जीते रहे

वक्त के बहते हुए

लम्हों के साथ

अपनी ठहरी हुयी जिंदगी

हर लम्हा

इक नए रंग में

रंगा हुआ सा

नई खुशबुओं में

रचा हुआ सा

नये  उमंग

नई तरंग

नई दिशाओं में

बसा हुआ सा

नये नये सपनों से

भरा हुआ सा

नई तमन्नाओं से

जगा हुआ सा

इन लम्हों को जी कर

जी करता है

वक्त के बहते धार को

वहीँ पर रोक दूं

जहां पर जिंदगी ठहरी थी

जब तुम मिले थे

मुझे 

1 comment:

  1. टिप्पणी की कोई गुंजाइश ही नहीं है यहाँ पर!सिर्फ अहसास है और इसे रूह से महसूस किया जा सकता है बस| सचमुच प्रशांत सर! बेहतरीन भाव-श्रृंखला|

    ReplyDelete