मेरे प्रियतम
मेरे हृदय में बसती है
तुम्हारी छवि तुम्हारा नाम
दिन का सूरज ढल
जब बने सिन्दूरी शाम
खिल उठता है हृदय मेरा
और मैं लिखता हूँ
इक चिट्ठी तुम्हारे नाम
छोड़ आता हूँ उसे
दहलीज़ पर तुम्हारी
कि कभी तो पड़ेगी
उस पर नज़र तुम्हारी
फिर खिल उठेगी
मेरी हर सिन्दूरी शाम
जब होगी तुम्हारे हाथों में
मेरी चिट्ठी तुम्हारे नाम
मेरे प्यार की खुशबू में
लिपटी हुयी
मेरी अंतस की भावों में
सिमटी हुयी
प्रेम की पहली किरणों से
सज़ कर
नव पल्लवित फूलों सी
खिल कर
जब तुम उसके
शब्दों से मिलोगी
मालूम है मुझे
तुम फूलों सी खिलोगी
क्यूंकि उस चिट्ठी के
हर इक शब्द
मैंने
फूलों से सजाये हैं
अपने दिल के भावों को
इत्र से महकाये हैं
मेरे प्रेम का है वो प्रथम
स्वीकार
मेरी चिट्ठी जो मैंने
तुम्हे लिखी है
पहली बार
मेरे प्रियतम
बताना मुझको
करती हो ना उसे
तुम भी स्वीकार ?
मेरे हृदय में बसती है
तुम्हारी छवि तुम्हारा नाम
दिन का सूरज ढल
जब बने सिन्दूरी शाम
खिल उठता है हृदय मेरा
और मैं लिखता हूँ
इक चिट्ठी तुम्हारे नाम
छोड़ आता हूँ उसे
दहलीज़ पर तुम्हारी
कि कभी तो पड़ेगी
उस पर नज़र तुम्हारी
फिर खिल उठेगी
मेरी हर सिन्दूरी शाम
जब होगी तुम्हारे हाथों में
मेरी चिट्ठी तुम्हारे नाम
मेरे प्यार की खुशबू में
लिपटी हुयी
मेरी अंतस की भावों में
सिमटी हुयी
प्रेम की पहली किरणों से
सज़ कर
नव पल्लवित फूलों सी
खिल कर
जब तुम उसके
शब्दों से मिलोगी
मालूम है मुझे
तुम फूलों सी खिलोगी
क्यूंकि उस चिट्ठी के
हर इक शब्द
मैंने
फूलों से सजाये हैं
अपने दिल के भावों को
इत्र से महकाये हैं
मेरे प्रेम का है वो प्रथम
स्वीकार
मेरी चिट्ठी जो मैंने
तुम्हे लिखी है
पहली बार
मेरे प्रियतम
बताना मुझको
करती हो ना उसे
तुम भी स्वीकार ?
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