Saturday 3 November 2012

मेरे प्रेम का प्रथम स्वीकार

मेरे प्रियतम

मेरे हृदय में बसती है

तुम्हारी छवि तुम्हारा नाम

दिन का सूरज ढल

जब बने सिन्दूरी शाम

खिल उठता है हृदय मेरा

और मैं लिखता हूँ

इक चिट्ठी तुम्हारे नाम

छोड़ आता हूँ उसे

दहलीज़ पर तुम्हारी

कि कभी तो पड़ेगी

उस पर नज़र तुम्हारी

फिर खिल उठेगी

मेरी हर सिन्दूरी शाम

जब होगी तुम्हारे हाथों में

मेरी चिट्ठी तुम्हारे नाम

मेरे प्यार की खुशबू में

लिपटी हुयी

मेरी अंतस की भावों में

सिमटी हुयी

प्रेम की पहली किरणों से

सज़ कर

नव पल्लवित फूलों सी

खिल कर

जब तुम उसके

शब्दों से मिलोगी

मालूम है मुझे

तुम फूलों सी खिलोगी

क्यूंकि उस चिट्ठी के

हर इक शब्द

मैंने

फूलों से सजाये हैं

अपने दिल के भावों को

इत्र से महकाये हैं

मेरे प्रेम का है वो प्रथम

स्वीकार

मेरी चिट्ठी जो मैंने

तुम्हे लिखी है

पहली बार

मेरे प्रियतम

बताना मुझको

करती हो ना उसे

तुम भी स्वीकार ?








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