Sunday 25 November 2012

समय चक्र

जिन हाथों की उँगलियाँ

पकड़ कर

हम

अपनी राह

तलाशते थे कभी

आज

वही हाथ

अपनी उँगलियाँ

मेरी तरफ बढ़ा रही हैं

अपनी राह तलाशने को

समय के चक्र में

उँगलियों की भूमिका

कब बदल गई

पता ही नहीं चला

अभी तक

उन्हीं उँगलियों के सहारे

मैं अपनी राहें तलाशता था

आज

जब उस हाथ ने

अपनी उँगलियाँ

मेरी तरफ बढ़ाईं

तो यह अहसास हुआ

कि

जिन उँगलियों को पकड़ कर

मेरा बचपन बड़ा हुआ

आज

उन उँगलियों को

उम्र की इस दहलीज़ पर

पहुँच कर

दरकार है

मेरी विश्वस्त उँगलियों की

अपनी राह तलाशने के लिए

हाथ वही हैं

उँगलियाँ भी वही

विश्वास भी वही

सहारे की मजबूती भी वही

बस आज

उन उँगलियों की

भूमिका बदल गई है


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